मौर्यकालीन प्रशासन
मौर्य प्रशासन पूर्णत केंद्रीकृत प्रशासन था।
चक्रवर्ती शब्द की अवधारणा को सर्वप्रथम अर्थशास्त्र में लिखा गया है।
चाणक्य ने राज्य की सप्तांग अवधारणा का प्रचलन किया था।
अर्थशास्त्र में लिखा है की राज्य एक पहिए पर नहीं चल सकता
चाणक्य ने शत्रु को राज्य का 8 वा अंग माना है।
राजा को सहायता देने हेतु एक मंत्री परिषद होती थी जिसे अशोक के अभिलेखों में परिषा कहा गया है।
मंत्रियों की नियुक्ति उनके चरित्र परीक्षण के बाद करते थे इससे उपधा परीक्षण कहा गया है।
अर्थशास्त्र में 18 तीर्थों का उल्लेख है।
प्रधानमंत्री व पुरोहित
चंद्रगुप्त के समय यह पद अत्यंत महत्वपूर्ण था
चंद्रगुप्त का प्रधानमंत्री चाणक्य था।
अशोक ने अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री के पद को समाप्त कर दिया था।
समाहर्ता:- यह राजस्व का संग्रहण कर्ता था।
कोषाध्यक्ष को सन्निधता कहा जाता था।
मौर्य का प्रशासनिक वर्ग अमात्य था जिसका वेतन 1000 पण था।
पुलिस और गुप्तचर विभाग का प्रधान अधिकारी को महामत्यसर्प कहा जाता था।
मुद्रा की जांच करने वाले को रूप दर्शक से कहा जाता था।
प्रांतीय प्रशासन
अशोक के समय मौर्य साम्राज्य 5 प्रांतों में विभक्त था
1. उतरापथ की राजधानी तक्षशिला।
2. दक्षिणा पथ की राजधानी सुवर्ण नगरी।
3. अवंती की राजधानी उज्जैन।
4. कलिंग की राजधानी तोसाली।
5. मगध की राजधानी पाटलिपुत्र।
प्रांत को चक्र कहा जाता था।
प्रांत का विभाजन मंडल में होता था जिसका अधिकारी प्रदेस्टा होता था। जिसे अशोक के अभिलेख में प्रादेशिक कहा गया है।
मंडल जिलों में वक्त होते थे, जिलों को विषय कहा जाता था।
जिलों का विभाजन गांव के समूह में होता था।
100 गांव के समूह को संग्रहण कहा जाता था।
200 गांव के समूह को खार्वटिक कहा जाता था।
800 गांव के समूह को स्थानीय कहा जाता था।
गांव के अधिकारी गोप व स्थनिक होते थे।
अशोक ने राज्य अभिषेक के 27 वर्ष में रज्जुक नामक अधिकारी की नियुक्ति की थी।
दंड से संबंधित क्षमा याचना की अपील भी रज्जूक से ही होती थी।
प्रजा के नैतिक चरित्र की देखभाल करना धम्म महामात्र नामक अधिकारी की थी।
नगर प्रशासन
नगर का प्रशासन 6 समिति अब मिलकर चलाती थी। प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे।
मौर्य काल में कर प्रणाली जनगणना पर आधारित थी।
मेगस्थनीज ने नगर के अधिकारी को एस्ट्रोनॉमो व जिले के अधिकारी को एग्रोनोमोई कहा था।
गुप्तचर व्यवस्था
गुप्तचर दो प्रकार की प्रणाली थी।
1. संस्था :-एक ही स्थान पर रहकर गुप्तचरी करने वाली संस्था।
2. संचरण :- भ्रमण करके गुप्तचरी करने वाली संस्था।
चाणक्य ने गुप्तचरों को गुढ़ पुरुष कहा है।
वेश्या भी गुप्तचरी का कार्य करते थी, जिनको रूपा जीवा कहा जाता था।
सामाजिक व्यवस्था
वर्ण व्यवस्था को सामाजिक संगठन का आधार माना है।
सर्वप्रथम मौर्य काल में ही शूद्रों को कृषि कार्य में लगाया गया।
शूद्रों को दास व आर्य कहा गया है।
चाणक्य ने 9 प्रकार के दोषों का उल्लेख किया है।
मेगास्थनीज ने भारतीय समाज को सात वर्गों में विभक्त किया था।
एक प्रकार का सामूहिक उत्सव होता था जिसको प्रवहन कहा जाता था।
यूनानी लेखकों ने गंगा को भारतीयों की उपास्य देवी कहा है।
मूर्तियां बनाने वाले शिल्पी को देवताकारू कहां गया है।
अर्थव्यवस्था
मौर्य काल में अर्थव्यवस्था पशुपालन कृषि व्यापार पर आधारित थी।
समस्त भूमि के स्वामी को राजा या शासक कहा जाता था।
भू राजस्व कर उपज का 1/6 भाग होता था।
चंद्रगुप्त के समय ही सुदर्शन झील का निर्माण कराया गया था जो वर्तमान में गुजरात में स्थित है।
सिंचाई सुविधा को सेतुबंध तथा इस पर लिए गए कर को उदाकभाग कहते थे।
स्थानीय वस्तुओं पर 5% व विदेशी वस्तुओं पर 10% कर लगता था।
प्रणय एक आपातकालीन कर था।
कर मुक्त गांव को परिहारिका का कहते थे।
कच्चे माल की आपूर्ति करने वाला गांव को कुप्य कहा जाता था।
नगद कर देने वाले गांव को हिरण्य कहां जाता था।
सैन्य सेवा देने वाले गांव को आयुधीय कहा जाता था।
मौर्य काल का प्रमुख उद्योग सूती वस्त्र था।
बंगाल मलमल के लिए जाना जाता था।
मौर्य काल में कई प्रकार के सिक्के प्रचलित थे।
जैसे निस्क - स्वर्ण।
पण, कार्षापण, धरण - चांदी।
माषक, काकनी - तांबे।
स्थापत्य कला
अशोक के स्तंभ मिर्जापुर के चुनार नामक स्थान के बलुआ पत्थरों से निर्मित है।
1917 में स्पुनर को बुलंदी बाग जिले के कुम्हारनामक स्थान से चंद्रगुप्त मौर्य का लकड़ी का बना राजमहल प्राप्त हुआ था।
अशोक का सबसे प्रसिद्ध स्तंभ सारनाथ स्तंभ है। इस स्तंभ पर चार सिंह पीठ टीका कर बैठे हुए हैं तथा इसी पर भारत का राष्ट्रीय वाक्य सत्यमेव जयते लिखा है।
इस स्तंभ पर हाथी घोड़ा बैल शेर भी बने हुए हैं।
इसमें मूल रूप से 32 तीलिया थी जो वर्तमान में 24 है।
सुल्तानगंज से बुध की मूर्ति प्राप्त हुई है
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